कुछ ही दूरी पर रहता है मेरा दोस्त
इस महान शहर में जिसका नहीं कोई अन्त
फिर भी दिन धल जाता है, सप्ताह भाग चलता है
पता चलने से पहले ही साल बीत जाता है|
ऄेार मैं मेरे पुराने दोस्त का चेहरा देख ही नहीं पाता
क्योंकि ये जीवन का तेज, भयानक दौड, व्यस्तता|
वह जानता है, मैं आज भी उसे पसन्द करता हूँ उतना ही
जितना करता था मैं जब बजाता था उसका घर की घटीं |
ऄेार वह बजाती मेरी, लेकिन तब हम छोटे थे
मगर अब हम है व्यस्त ऄेार थके हुए
थक गए है एक मूर्ख खेल खेलते खेलते
थक गए अपना नाम कमाने की कोशिश करते करते |
कहता हूँ, '' मैं कल ही जिमि से भेंट करूँगा
दिखाने के लिये की मैं अब भी उसे नहीं भूला"|
लेकिन कल आता है ऄेार चला जाता है कल
ऄेार हम दोनों के बीच दूरी बढ़ती है हर पल|
दूरी है मीलों की, हो कर भी इतनी पास
आपका टेलिग्राम सर, जिमि चल बसा आज
ऄेार अंत में वही हमें मिलता हैं , लायक है हम उसीका
कुछ ही दूर में एक दोस्त, जो गायब हो गया
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Translated from original English poem written by Anders Lim
Translated from original English poem written by Anders Lim