मैंने तुम्हे देखा था
मुझ पर झांकती हुई
खिड़की से
चुपके चुपके
मैंतो समझ नहीं पाया
तुम्हारी आँखों की
मूक भाषा..
अगर व्यक्त की होती
प्यार भरी बातों से
या पत्र लिख कर
अपने कोमल हाथों से
मेरी दुनिया भी
हो गयी होती
खुबसूरत
सजी हुई
फूलों से
परीयों के देशों का....
------------------------- ड० माखन लाल दास (२१ मई, २०१३)
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