शोक
उनकी कविताओं में कभी
सितारें खिलते थे
ह्म लम्बी सांस लेते थे
आदमी नाम की पवित्रता
शरीर में चिपके हुए थे
उनकी कविताओं में कभी
सितारें खिलते थे
ह्म लम्बी सांस लेते थे
आदमी नाम की पवित्रता
शरीर में चिपके हुए थे
अब शब्दों हैं धुंधले
फटे झोपड़ी में
उनकी कविता में
उड़ आ कर गिरा है
एक सूखा पत्ता
रबिन्द्र सरकार की असमीया कविता 'शोक' का अनुवाद
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